भारतीय संविधान के दो पहलू

पहली तस्वीर के बारे में आप सब जानते ही हैं , दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आवास में आग लगने के बाद मिले भारी मात्रा में नकदी के जले  हुए ढेर मिले थे । अब यह इलाहबाद हाईकोर्ट के जज हैं।   

 वहीं दूसरी तस्वीर है छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रहने वाले 83 वर्षीय जागेश्वर प्रसाद अवधिया की, जिनकी  ज़िंदगी एक झूठे आरोप ने तबाह कर दी। 1986 में सिर्फ़ ₹100 की रिश्वत लेने का इल्ज़ाम लगा, और उसी ने उनकी नौकरी, परिवार और सम्मान सब कुछ छीन लिया।

आज, पूरे 39 साल बाद हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया, लेकिन इतने लंबे इंतज़ार ने उनके जीवन को गहरी चोट दी है। एक ईमानदार कर्मचारी को रिश्वतखोर कहकर अपमानित किया गया, उनकी पत्नी का दुखों से दम टूट गया, बच्चों की पढ़ाई छूट गई, परिवार समाज से अलग-थलग पड़ गया।

जागेश्वर अवधिया कहते हैं – “न्याय तो मिला, लेकिन किस कीमत पर? मेरा पूरा परिवार बर्बाद हो गया।” अब वे सिर्फ़ सरकार से अपनी बकाया पेंशन और मदद की उम्मीद कर रहे हैं ताकि बाकी दिन सुकून से जी सकें।

उनके बेटे नीरज आज भी याद करते हैं – “पापा का नाम साफ़ हो गया, लेकिन हमारा बचपन और जवानी लौटकर नहीं आएगी।”

यह घटना सिर्फ़ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि भारतीय न्याय प्रणाली की उस कड़वी हकीकत को दिखाती है, जहाँ न्याय की देरी कभी-कभी न्याय से भी बड़ी सज़ा बन जाती है

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